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मुनियों की जीवनियाँ
ळेकर इलापुत्र नये-नये खेल दिखा रहा है। नीचे खड़ी२ नटराज को लकी ढोल वजा रही है । हजारों की संख्या में दर्शक लोग बड़ी तन्मयता से देख रहे हैं राजा और रानी भी महल के झरोखे मै बैठे२ खेल देख रहे हैं । राजा का ध्यान उस नट कन्या पर जाते ही वह उसे पाने की और इलापुत्र के मरजाने की मन ही मन कामना करने लगा। तथा एक बार और, एक बार और, कह कह कर राजा ने इलापुत्र को तीन वार वांस पर चढाकर खेल देखे। परन्तु इलापुत्र सकुशल नीचे उतर आया। अब धन को आशा से राजा का मुंह देखने लगा। तब राजा ने कहा, एक खेल और दिखलाओ। इलापुत्र तीन२ वार खेल दिखाने से इतना थक गया था, कि अब मन और शरीर दोनों ने उत्तर दे दिया । सोचा, यह कंजूष राजा कुछ देना नहीं चाहता, प्रत्युत मुझे वार-वार वांस पर चढाकर, नीचे गिरकर मरजाने से मेरी भावी पत्नी इस नटकन्या को हड़पना चाहता है। धिक्कार है इस कामी नरेश को। किन्तु नटकन्या ने अपने भावी पति की मनो भावना को भाँपते हुये कहा, घबराइये मत ! चढजाइये ! सफलता आपके चरण चूमेगी । इस प्रकार अपनी भावी पत्नी द्वारा प्रेरणा पाकर इलापुत्र चौथीवार खेल करने को वांस पर चढ ही गया।
वांस पर केवलज्ञान--वांस इतना ऊंचा था, कि आस पास के घरों का भीतरी भाग आसानी से नजर आरहा था। एक घर में एक अत्यन्त रूपवती नवयौवना सेठानी अपने आंगन में भिक्षार्थ आये हुये मुनिके सामने मोदकों का थाल भर कर खड़ी हुई कह रही है। भगवन् ! लीजिये । भगवन् ! कृपा करो। किंतु मुनि की नजर अपनी संयमी-भावना के अनुसार आहार की ओर है, स्त्री सौंदर्य की ओर कोइ लक्ष्य ही नहीं है। इस प्रसंग को देखकर नाटक करते२ ही इलापुत्र ने सोचा धन्य है इस मुनिजी को । जो कि एक अत्यन्त रूपवती स्त्री के
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