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शान्त सुधारस
माया प्रपंच रहित, सरल-शुद्ध चिच, दयालु, कोमल हृदय; संयम की भावना शुभ लेश्या, ऐसे भावोंसे "पुरुषलिंग" का बंध होता है। ___ मायाचार, अनाचार, कुटिलता करके भी सच्चे-सीधे बने रहना, मुख से मीठी-मीठी बातें करना, हृदय में सदा घात लगाए रहना । इत्यादि परिणामों से "स्त्रीवेद" का बंध होता है।
महाक्लेश, कंकास, कलह, आत-रौद्र परिणाम, 'निरंतर कामपीडित मन से 'नपुंसक वेद' का बंध होता है।
हे जीव ! तू अरूपी है, अनादि सिद्ध है, वचनातीत अगोचर है । सर्व विकारमुक्त ऐसा अपना लिंग जानकर लैङ्गिक विकार तजकर आत्म प्रेम जागृत कर शांतरस चख ।
हे चिदानन्द ! अनादिकाल से तू मिथ्यात्व, अविरति रूप भ्रममें पडा है अतः एकाएक इस अनादि पाप मूल
यंकर याधि से मुक्त होना कठिन है। क्योंकि जिस प्रकार
"हे" गोले को अग्नि में तपा कर सूर्ख अग्नि जैसा ही मार्ग को कहा
बना पर, उस की स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है। बाद
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