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शान्त सुधारस
___ जो मूर्ख होते हैं वे ही परिग्रह विषय विकार सामग्री देखकर खुश होते हैं। परिग्रहधारियों को सुखी मानना वज्राग्नि को शीतल मानने जैसी मूर्खता है। इन्द्रिय जन्य विषय भोगों में आनन्द मनाना काल कूट विष पानकर अमर होने की लालसा जैसी भूल है। शरीर को तारमर मानना चपला की कोंध में रत्न की परीक्षा जैसा साहस, हे जीव ! भले अज्ञानाधीन होकर इन नश्वर सुखों को रगोय-मनोज्ञ मान, परंतु वास्तव में ये इन्द्रजाल जैसे मायावी ही हैं । स्वमवत् मिथ्या हैं। आत और रौद्र ध्यान अनादिकाल से जीव के साथ लगे हैं इनका फल दुर्गति ही है । यह स्वयं पापवृक्ष है भला इस के फल मधर कहां से होंगे? अतः सम्यगदर्शन, ज्ञान पूर्वक विचार कर आत-रौद्र परिणामों से मुक्त होजा ।
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