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शान्त सुधारस
अतिसार, ज्वर, पित्तप्रकोप श्लेष्मविकार, गठिया, संधिवात आदि भयंकर रोगों से उत्पन्न मरणान्त वेदनावश आकुल-व्याकुलता। हाय ! स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसी वेदना भोगनी पड़ेगी ? इससे कैसे जल्दी मुक्त बनू ? क्या करूं? कौन-सी दवा लू? आदि चिन्तामें ही अहर्निश व्यस्त परिणाम ।
भोगात-निदानात-ध्यान
मुझे देव-देवेन्द्र, सम्राट, चक्रवर्ती की विलास सम्पदा कब प्राप्त होगी ? त्रैलोक्य में श्रेष्ठ ऐसा सुभग रूप यौवन कैसे प्राप्त हो ? मेरे सब शत्र ओं का विनाश कब होगा ? न जाने कब सुन्दर--स्त्रीसंग से खूब तृप्त होकर भोग भोगूगा? सब शत्र ओं को नष्ट कर कब निश्शंक विश्व पर राज्य करूगा ? देवांगनाएं कब मेरे समक्ष नृत्य करेगी! वगैरह विकल्पों में चित्त की एकाग्रता।
तप, संयम, इन्द्रियादि दमन, के प्रतिफल में इन्द्रादि पदवी की वांछा, मेरे तप के प्रभाव से मेरे शत्रु का नाश हो जाय। उसका पूरा कुल खत्म हो जाय, कोईनाम लेवा न बचे, तभी मुझे शान्ति होगी ! इस प्रकार क्रोधाधीन
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