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________________ ३४ शान्त सुधारस अस्तित्व का ज्ञान नहीं, वह बहिरात्मा ही है। मोहनिद्रा में पड़े प्राणी को आत्मानन्द की अनुभूति कहां पड़ी है ? जिस समय मोह निद्रा टूटेगी आत्म-ज्ञान होगा और ऐसा समझ में आएगा कि ये विषय विकार, शरीर सम्बन्ध मुझे बंधनरूप है, महान बेड़ियां है, न जाने कब इनसे मुक्ति मिलेगी तभी आत्मानन्द की अनुभूति उपलब्ध होगी। रे मन ! जिस सुख, धन, वैभव, राज्य-सम्पदा के लिये पिता-पुत्र और पुत्र-पिता की हत्या तक करने पर उतारू हो जाय ऐसे निकृष्टतम संसारी सुखों के भूलभुलैये में फंसा तू स्वयं यमराज की सबल दाढ़ों में दबोचा पड़ा है। ये हलाहल विषय-विष .जिनके लिये क्यों तू अपना अमृत भण्डार लुटा रहा है ? हे परस्वभाव रक्त ! तू क्यों नहीं जान लेता कि इन पुत्र, बन्धु-बान्धव, इष्टवर्ग के सम्पर्क में किसी ने भी सुख नहीं पाया है। अरे ! जबतक स्तन्यकी पूर्ति होती है ये प्रेमी बने फिरते हैं, जिस दिन स्वार्थ पूर्ति करने में तू असमर्थ हो जायगा इन्हें दुश्मन बनते देर नहीं । यदि तू अभी चल बसा तो ये प्रिय निकट सम्बन्धी तेरे इस शरीर को श्मशान में ले जा कर फूंक आयेंगे । एक क्षण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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