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आर्तध्यान के चार पाए १-संयोगात ध्यान, २–इष्टवियोगार्तध्यान, ३-चिन्तार्तध्यान, ४-भोगात निदानात ध्यान ।
संयोगा-ध्यान
अग्नि, जल, विष, के संसर्ग से शस्त्र, तलवार, तोप, बन्दूक, कटार के प्रहार से । बाघ, शेर, सर्प के स्पर्श से आक्रमण से, जलचर, मगर, गेंडादि की पकड़ से उत्पन्न भयसे, शत्रु ओं के उपद्रव से, राजकोप से दुष्टजन सम्पर्क से, धन सम्पत्ति के नष्ट होने से, दारिद्रय से पीड़ित संयोग से दुखात चित्त की एकाग्रता।
इष्टवियोगात ध्यान
धन, ऐश्वर्य, स्त्री-पुत्रादि के वियोग से बन्धु-बान्धवों के मरण से, सौभाग्य, महत्ता के भ्रंश से, रुचिकर, मनोज्ञ, आशापूर्ण सम्बन्ध भंग से। मोह मुग्ध दशा में भय-भ्रान्त हाय, कलाप करते हुए शोकात परिणाम ।
चिन्तार्तध्यानमहाव्याधि, श्वास, खांसी, भगंदर, पेटशूल, कोढ़,
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