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पान्त सुधारस
भी अब तेरा घर में रहना इन्हे भारी लगेगा अरे ! अब तो इस शरीर को छूना भी पाप मानेंगे यह अछूत हो जाता है। देख ले, तेरे बिना इस शरीर का यह मूल्य है। ऐसे संसार से शीघ्र निवृत हो ।
हे जीव ! मात्र अपने एकान्त सुख स्वभाव को भुलाकर ही तू इन शुभा-शुभ कर्माधीन विकारों में अनुरागी तथा अरुचिकर सामग्री में खेद खिन्न बना है। अब विवेकी बन कर इस राग द्वेषात्मक परिणतिसे मुक्त होकर परमानन्द प्राप्त कर । हे जीव ! इष्ट अनिष्ट संयोगों में तू आध्यान रौद्रध्यान करता है । उस आतध्यानके चार पाए-यानी प्रकार है
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