________________
मुनियों की जीवनियाँ धर्मों का अनुभव ही नहीं रह गया था। सिर फटने के साथ-साथ कर्मों के बन्धन टूट गये।
एक जीवदया के लिये ऐसे महान मुनि ने अपना बलिदान करके सत्व भावना का महान आदर्श उपस्थित कर दिया। पीछे से सुनार के घर के सामने किसी लकड़हारे ने विश्राम लेने के लिये अपना भारा इतने जोर से जमीन पर फेंका, कि उस आवाज के धक्के से डर कर क्रौंच पक्षी ने सारे जव वापिस कर निकाल दिये। सुनार ने अब समझा कि निष्कारण ही मेरे द्वारा एक महान तपस्वी मुनि की हत्या हो चुकी । अब मेरा क्या होगा ? इस भय से घबरा कर मेतार्य मुनि का वेष पहन कर घर से निकल गया। अन्त में इसने भी अपना कल्याण कर लिया।
(५) कार्तिधर और सुकोसल
(निर्देश ढा० ३ गा० २३) अयोध्या के नरेश कीर्तिधर अपने पुत्र को राजगद्दी देकर साधू बने । इससे महारानी को बड़ा दुख लगा । कालान्तर से कीर्तिधर मुनि पारणा लेने के लिये अयोध्या में आये । झरोखे में बैठी हुई महारानी ने मुनि को देखकर सोचा आप मुझे छोड़कर चला गया अब मेरे लड़के को भी साधु बना कर ले जायगा। यों सोच कर सेवकों से मुनि को नगरी से बाहर निकालने की आज्ञा दे दी। उन्होंने वैसा ही किया । तपस्वी और राजर्षि के साथ में ऐसा व्यवहार देखकर देखकर सारी जनता रानी को धिक्कारने लगी। राजमहलों में रहने वाली एक धाय माता ने सुकोसल राजा को इस बात की सूचना दे दी। राजा घबराया हुआ उठा और मुनि को वंदन करने के लिये चल पड़ा। मुनि ने उसे उपदेशा.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org