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(४) मुनि मेतार्य
(निर्देश ढाल० ३ गा० २३) मुनि मेतार्य महान तपस्वी थे। एक वक्त पारणा लेने के लिये किसी सुनार के घर पहुंच गये। उस समय वह किसी की 'जवमाला' बनाने के लिये सोने के जव पड़ रहा था। उन जवों को खुले ही छोड़ कर मुनि को आहार देने के लिये उठ गया । पीछे से पास में बैठे हए एक क्रौंच पक्षी ने वे जब खा लिये, और उड़ कर सामने एक वृक्ष की डाली पर जा बैठा । मेतार्य मुनि ने इस पक्षी का यह काम देख लिया। अब गौ-चरी लेकर मुनि जाने लगे। इधर सुनार देखता है कि घड़े हुए जव नहीं है । सुनार का वहम मुनि पर गया और उन्हें पकड़ कर लाया । पहले तो धीमे से बोला मेरे जव लेकर कहां चले हो । लामो मेरे जव। मुनि मौन रहे । तब वह जोशसे बोला, अव देते हो या नहीं। मुनि ने पंखी का नाम इसलिये नहीं बताया कि हिंसा की सम्भावना थी। मुनि द्वारा कुछ भी उत्तर न मिलने से वह मुनि को पीटने लग पया। मुनि तो फिर भी मौन। तब उसने रस्सी से हाथ पैर बांध कर गरमागरम रेत में बिग दिया। फिर भी मौन रहे । अन्त में चमड़े की रस्सी को गीली करके मुनि का सिर बांध दिया । ज्यों-ज्यों रस्सी सूखने लगी त्यों-त्यों सुनार का मुस्सा और मुनि की वेदना बढ़ती ही गयी। मेतार्य मुनि ने तो जीवदया के लिये अपना बलिदान करना ही श्रेष्ठ समझ रखा था।
मुनि की आत्मा तो देहाध्यास से अपर उठी हुई थी। इनको ' शारीरिक
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