________________
(३) मुनि कुरुदत्त
( निर्देश – ढाल २ गाथा ८ )
तक ध्यान करने
हस्तीनागपुर के निवासी कुरुदत्त नामक एक कुमार ने जैनी दीक्षा ली। फिर गुरुजी के पास आगमों का अभ्यास करके एकलविहारी होने की आज्ञा ली । आपने विहार करते २ एक उद्यान में पांच प्रहर की प्रतिज्ञा लेकर पद्मासन लगा लिया । उस वक्त कई चोर किसी के यहां से गौओ कर को चुराकर मुनि के पास से निकले । पीछे से गौओं का मालिक वहां पहुंच कर मुनि से पूछूने लगा कि, बतलाइये चोर किधर गये। मुनि ने सोचा बोलने से हिंसा की संभावना है, अतः ऐसे प्रसंग पर मौन ही श्रेयकर है। तब गौओं के मालिक ने नोकरों से कहा, इस मुनि के सिर पर अंगारे रखो, फिर अपने आप बतलायेगा। नोकरों ने तत्क्षण गीली मिट्टी लेकर मुनि के सिर पर पाल बांध डाली । और उसमें जाज्वल्यमान अंगारे भर दिये । सिर भावना के बल से अडिग बैठे रहे । और सोचने लगे,
I
जलते हुये भी मुनि सत्त्व जलनेवाली वस्तु तो पुद्मल
है । मेरी आत्मा तथा आत्मा के गुण ज्ञान, दर्शन चारित्र आदि तो कभी नहीं जलाये जा सकते । इस तरह एकत्त्व - भावना द्वारा समस्त कर्मों का क्षय करके : मुक्ति पहुंच गये । ( उत्तराध्ययन २ )
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org