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पंच भावना सज्झाय ___ यह सुनकर पूर्वराग से प्रेरित; अथवा प्रभु की ज्ञानातिशय बताने के लिये; श्री गौतम स्वामी खंधक के सम्मुख जाकर बोले ।
भो ! स्कंधक ! स्वागतम्-सुस्वागतम् । फिर प्रभु के मुख से सुनी हुई बात का स्पष्टीकरण करते हुये कहने लगे कि; क्या आप इसीलिये आये हैं। स्कंधक ने आश्चर्य के साथ कहा कि; तुम्हें इन बातों का पता कैसे चला ?। गौतम बोले मेरे धर्माचार्य श्री श्रमण भगवान महावीर ने मेरे से कहा था;। वे सर्वज्ञ हैं; अनंत ज्ञानी हैं। चलिये अब उनके पास चलें। प्रभु के पास पहुंचते ही खंधक सन्यासी ने तीनबार प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार किया। प्रभु ने इन के वाहों प्रश्नों का समाधान कर दिया। इससे प्रभावित होकर खंधक संन्यासी ने भगवान के पास जैनी दीक्षा ले ली। फिर उन्होंने ग्यारह अंगों का अभ्यास किया साधु की बारह प्रतिमाएं ( प्रतिज्ञायें) धारन की; गुण रत्न संवत्सर नामक तपस्या की और बारह वर्ष की दीक्षा-पर्याय का पालन कर अंत में विपुलगिरि पहाड़ पर पादोपगमन संथारा करके बारहवें देवलोक में गये । (भगवती-शतक २)
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