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(२) श्री खंधक मुनि
(ढा० २ गा० ८ में निर्देश ) श्रावस्ती नगरी के :"गर्दभालि" नामक परिव्राजक के शिष्य का नाम खंधक संन्यासी था। वह चार वेद इतिहास और निघण्टु ( कोष ) का सांगोपांग ज्ञाता था। एक वक्त श्रमण भगवान महावीर के श्रावक ( उपदेश सुनानेवाला) पिंगल नामक निग्न थ ने परिव्राजक के स्थान पर जाकर निम्नोक्त प्रश्न-पूछे । हे स्कंधक | लोक; जीव; सिद्धशिला और मुक्त जीव अंत सहित हैं या अंत रहित, तथा किस प्रकार के मरण से संसार (जन्म-मरण ) बढता या घटता है। इन प्रश्नों को दो तीन बार दुहराने पर भी स्कंधक को उत्तर नहीं आया। तब लोगों की कहते हुये सुना कि श्रमण भगवान महावीर समीपवर्ती "कयंगला नगरी" में आये हुये हैं । अतः स्कंधक ने वहां जाकर इन प्रश्नों का समाधान पाना उचित समझा । इसी भावना के साथ वह उधर चला।
उधर श्रमण भगवान महावीर ने श्री गौतम गणधर से फरमाया कि आज तुम्हें तुम्हारा पूर्व स्नेही मित्र मिलेगा।
गौत्तम बोले-भगवान् ! वह कौन होगा ? प्रभु बोले-उसका नाम है खंधक संन्यासी। गौतम बोले-उनके मिलने में कितनाक समय है ? प्रभु बोले-बस ! थोड़ा सा। वह अभी इन २ प्रश्नों का समाधान पाने के
लिये यहां आ रहा है। गौतम बोले- क्या वह आपके पास दीक्षित होगा ? प्रभु बोले-हां ..
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