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________________ परिशिष्ट [] तपस्वी मुनिओं की जीवनियाँ [१]मुनि ढंढरण कुमार ढा० २गा० ८ में निर्दिष्ट द्वारकाधीश श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र का नाम ढंढण कुमार था । आप बड़े गुणवान और लावण्य वाले थे । श्री नेमिनाथ भगवान की वैराग्य-मयी वाणी सुनकर एक सहस रानियों का त्याग करके आप साधु बने। दोक्षा के साथ ही आप ने पह अभिग्रह किया, कि यदि मुझे अपनी लब्धि (भाग्य ) का आहार मिले तो लेना नहीं तो तपस्या चालू :रखनी। मैं अन्य साधुओं द्वारा लाया हुआ आहार न लूंगा, न मेरा लाया हुआ किसी को दूंगा । इस प्रकार का सम्भोग प्रत्याख्यान करके प्रतिदिन गौचरी जाते हैं । परन्तु पूर्वोपार्जित अंतराय कर्म के उदय से शुद्ध आहार तो क्या, पानी तक नहीं मिला। इतने पर भी मुनि सोचते हैं । मेरे सहज-सहज तप हो रहा है। उत्सर्ग मार्ग को आराधना से पुद्गलों का संग छूट रहा है ! पूर्व-भव वर्णन ___ मुनि ने एक दिन प्रभु से पूछा, कि भगवन् ! मेरे ऐसा क्या अन्तराय कर्म बंधा हुआ है ? आहार-पानी भी नहीं मिलता । प्रभु बोले-तू किसान के जन्म में राजा की आज्ञा से पांच सौ हलों द्वारा खेती करवा रहा था। एक वक्त उन बलों और आदमियों के भोजन का समय हो जाने पर भी, तूने लोभ के कारण अपने निजी खेत की एक चास मुफ्त में निकलवाई थी। इस प्रसंग से बड़े वीन रस के साथ तेरे अन्तराम कर्म बंध गया । यहां आहार पानी न मिलना, उसी कर्म का फल है ! अब इसे समता से सहकर काट डालो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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