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पंच भावना सज्झाय
... श्री स्कंधक मुनि ने यह तप किया था। ( भगवती-शतक२; )
५ "जव मध्य तप" जैसे शुक्लपक्ष में एक-एक कला करके चांद बढता है । वैसे जव मध्य तप करने वाला प्रतिपदा के दिन सिर्फ एक कवल आहार ले। दूसरे दिन दो कवल । यू पूर्णिमा के दिन तक पन्द्रह कवल का आहार : बढाये। फिर कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा की कलाओं की तरह कवल संख्या घटाता चले। अर्थात् प्रतिपदा को पन्द्रह कवल । द्वितीया को चवदह । यों अमावस्या को एक कवल तक आहार लेकर इस तप की समाप्ति करे। इस तप में एक महीना लग जाता है।
६ "वज्र मध्य तप"
जैसे. “जव मध्य तप शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पूर्ण होता है।
वैसे ही उससे विपरीत यह वज़ मध्य तप, कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पन्द्रह कवल, अमावस्या को एक कवल फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक कवल, पूणिमा को पन्द्रह कवल आहार लेने से एक महीने में समाप्त होता है।
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