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परिशिष्ट (ला
चौलीस तेले करने पड़ते हैं। बाकी सोलह उपवास तक मारोहण और अवरोहण उसी प्रकार का है। तपस्या के दिन पारणे भी उतने ही हैं। परिपाटियाँ भी चार है। यह तप राजा श्रेणिक की दूसरी रानी "सुकाली" ने किया था (नंबर आठवाँ वर्ग)
३ "मुक्तावली-तप" एक उपवास के बाद एक बेला, फिर एक उपवास के बाद एक तेला । ऐसे एकर उपवास के अंतर से पन्द्रह उपवास तक चढना। फिर सोलह उपवास करके एक उपवास, पन्द्रह करके एक उपवास, यूँ बेला करके एक उपवास तक उत्तर जाना । इसमें तप दिन २८६ और ५६ पारणे होते हैं। कुल इम्पारह मास और पन्द्रह दिन लगते हैं। चारों परिपाटियों को पूर्ण करने में तीन वर्ष दस महीने चाहिये । पारणे की विधि रत्नावली तप के ही तुल्य है। यह तप श्रेणिक की नौवों रानी "प्रियसेन कृष्णा" ने किया था। -(40 वा.)
४ "गुण-रल-संवत्सर-तप" प्रथम महीने में एकान्तर उपवास करना। दिवस में सूर्य कैसम्मुख दृष्टि रख कर जहां धूप आती हो वहां "आतापना-भूमि" में बैठ रहना। रात्रि में किसी भी वस्त्र को ओढे या पहने विना वीरासन से बैठना । इस प्रकार दूसरे मास में बेले२ पारणा। तीसरेमें तेले तेले । चौथे में चोले-चोले, पांचवें, छठे, सातवें, आठवें नौवें, दसवें, ग्यारहवें ,बारहवें,तेरहवें ,चौदहवे,पन्द्रहवें ,सोलहवें मासमें बमशः पांच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, सोलह, सोलह उपवास करना ।
इस तप में कुल तेरहमास और सित्तर दिन उपवास के और तिहत्तर दिन पारणा के होते हैं।
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