________________
परिशिष्ट (ग)
द्वितीय ढाल की प्रथम गाथा में निर्दिष्ट
तप भावनामें उल्लिखित तपस्याओं की विधियां १ स्त्नावली तप की विधि:
सर्व प्रथम एक उपवास, एक बेला, एक तेला, फिर लगातार तत्पश्चात् एक उपवास से लेकर सोलह उपवास तक चढता जाये। ( ३४ ) बेले करे । तत्पश्चात् सोलह उपवास करके एक उपवास तक उत्तर बाये । फिर आठ बेले करे। फिर एक तेला, एक बेला, एक उपवास करके पूर्णाहुति कर डाले । इसमें तपस्या के दिन तीनसौ चौरासी ( ३८४ ) और पारणे अठ्यासी ८८ होते हैं । कुल मिलाकर पन्द्रह महीने और बाईस (२२) दिन लगते हैं ।
इस तपकी चार परिपाटी हुआ करती हैं। पहली परिपाटी में पारणे के दिन विगयादिक भी लिया जा सकता है । दूसरी परिपाटी में विगय (घृत- दूधदही - मिष्टान्नादि ) का सर्वथा त्याग रहता है । तीसरी परिपाटी में निर्लेप ( विना बघार ) आहार लेना । चौथी परिपाटी में आयंबिल ( किसी एक प्रकार के अनाज की बनी चीज, वह भी पानी में डुबोकर ) करना आवश्यक हैं। इस प्रकार की कठिन तपस्या राजा श्रेणिक की रानी "काली" नामक" आर्या ने की थी । - ( सूत्र - अंतगड़० वर्ग आठवाँ )
२ " कनकावली - तप" पूर्वोक्त रत्नावली तप में जिस जगह आठ बेले करने का विधान है, वहां कनकावली में आठ तेले तथा चौंतीस वेलों की जगह
Jain Educationa International
आठ बेळे ।
फिर चौतीस
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org