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________________ पंच अप्रशस्त भावनायें दया रहित होना, आसुरी भावना है। इस भावना वाल मुनि असुर ( भुवनपति ) देवता में उत्पन्न होता है ।—४ (५) साम्मोही भावना - T- उन्मार्ग का उपदेशक, सत्यमार्ग का निन्दक, उन्मार्ग को ग्रहण करनेवाला अपनी तथा औरों की आत्मा को मूढ बनानेवाला “साम्मोही - भावना" का अधिकारी होकर अगला जन्म सम्मोह ( देव - विशेष ) देवता में लेता है ॥ ५ ॥ फलितार्थ यह है, कि भावनाओं के आधार पर ही आयुष्य-कर्म का बंध होता है । अतः विवेकशील व्यक्ति का यह कर्त्तव्य हो जाता है, कि वह अपनी भावनाओं का निरीक्षण करता रहे । यदि अशुभ कमदय तथा गंदे वातावरण से अप्रशस्त भावनायें आती हों । उन्हें तत्काल निकाल कर सत् - साहित्य, सत्संगति, सद्धर्म - ध्यान द्वारा भावनाओं को प्रशस्त बनाने का प्रयास करता रहे। " भावना भव नाशिनी" भावना से संसार - भवभ्रमण का नाश होता है । Jain Educationa International ३७ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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