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परिशिष्ट (क)
बृहत्कल्प और पांच भावनायें
श्रीमद् देवचन्द्र जी महाराज ने मंगलाचरण के तीसरे दोहे में पंचभावनाओं का आधार बृहत्कल्प सूत्र बतलाया है । श्री बृहत्कल्प सूत्र में भावनाओं को संख्या तो यही है, किन्तु नाम और क्रम में अन्तर है । सूत्रानुसारी नाम और क्रम इस प्रकार है ।
( १ ) तपो भावना- ( २ ) सत्त्व भावना - (३) सूत्र - भावना - ( ४ ) एकत्व भावना - ( ५ ) और बल भावना ।
इनमें दूसरी सत्व भावना और पांचवीं बल भावना में शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से विशेष अन्तर नहीं है । किन्तु भाष्यकार ने शारीरिक शक्ति को बल गिनवाया है। तथा सत्व-भावना के अभ्यासार्थ पांच विशेष प्रतिज्ञायें बतलाई हैं । वे ये हैं - ( १ ) उपाश्रय में ( २ ) उपाश्रय से बाहर ( ३ ) चौराहे पर ( ४ ) शून्यगृह में तथा ( ५ ) श्मशान भूमि में जाकर ध्यान करना । पहली प्रतिज्ञाका पालन करते समय रात्रि में शेष साधुओं के सो जाने पर मुनि कायोत्सर्ग करके बैठे । उस समय उपाश्रय में गाढ अंधकार होने से रात्रि परिभ्रमणशील जानवरों ( चूहे बिल्लियाँ आदि ) द्वारा स्पृष्ट होने से अथवा काटे जाने से रोंगटे भी खड़े न हो, इस प्रकार का सत्व ( साहस ) रखे । इस तरह अगली २ प्रतिज्ञाओं में देवता - मनुष्य तिर्यञ्च आदि के विशेष भय पैदा होने पर भी डरे नहीं । !
श्रुत से कालमान
-तोसरी सूत्र - भावना में कहा है कि, यद्यपि
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