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पंच भावना सझाय
जेसलमेरी साह सुत्यागी, वर्द्धमान बड़भागी जी। पुत्र कलत्र सकल सोभागी, साधु गुण ना रागी जी।६। ____ भावार्थ =जेसलमेर निवासी सेठ श्री वर्धमान शाह बड़े त्यागी और सज्जन ये। पुत्र-स्त्री-इज्जत आदि सुखों की दृष्टि से भी भाग्यशाली थे। और साधुओं के गुणों के अनुरागी ( भक्त ) थे ।-६ तस आग्रह थी भावना भाई, ढालबंध मां गाई जी। भणशे गुणशे जे ए ज्ञाता, लहशे ते सुखसाता जी । ७।
भावार्थ उनके आग्रह से इन भावनाओं को ढालबद्ध लोक-देशियों की रागिनीमय पद्यबद्ध बनाया है। जो कोई जानकार जीव पढ़ेगा, व मनन करेगा उसे सुख और शान्ति की प्राप्ति होगी ॥७॥ मन शुदध पंचे भावनाभावो, पावन जिन गुण पावोजी। मन मुनिवर गुण संग बसावो, सुख सम्पति गृह थावोजी। ८ । ___ भावार्थ यह अंतिम पद्य शिक्षात्मक और आशीर्वादात्मक है। हे भव्यों ! मन की शुद्धि पूर्वक ये पांचों भावनायें भावो । और पवित्र जिन गुण को पाओ । मुनिजनों को, उनके गुणों के साथ अपने मन में वसावो। तुम्हारे घर सुख और संपति हो ।-८
"इत्यलम्"
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