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प्रशस्ति पंच भावना ए मुनि मन ने, संवर खाणी बखाणी जी। बृहत्कल्प सूत्र नी वाणी, दीठी तेम कहाणी जी । २ । __ भावार्य =मुनि जोवन के लिये तो ये पांचों भावनायें संवर की खान बतलाई हैं । जैसा "श्री बृहत्कल्प सूत्र" में देखा, वेसा इनका स्वरूप यहाँ कहा गया है ।२। कर्म कतरणी शिव निसरणी, ध्यान ठाण अनुसरणी जी। चेतन राम तणी ए घरणी, भव समुद्र दुःख हरणी जो । ३ । __ भावार्थ -ये भावनायें कर्मों को काटने के लिए कैंची, मोक्ष महल पर आरोहण करने के लिये सीढ़ी, शुभ ध्यान के स्थानों का अनुगमन करनेवाली, चेतनराम की गृहिणी, तथा भव समुद्र के दुःखों को हरण करने वाली हैं ।-३ जयवंता पाठक गुण धारी, राजसागर सुविचारी जी। निर्मल ज्ञान धरम सम्भाली पाठक सहु हितकारी जी । ४ ।
भावार्थ =अब ग्रन्थ समाप्ति करते हुए कवि अपनी गुरु परंपरा का वर्णन करते हैं । "श्री राजसागर" नाम के उपाध्याय बड़े अच्छे विचारशील, गुणवान, तथा जयवंत हुये । उनके शिष्य श्री "ज्ञानधर्म" नामक उपाध्याय बड़े निर्मल और हितकारी हुये।-४ राजहंस सद्गुरू सुपसाये, देवचन्द्र गुण गाय जी । भविक जीव जे भावना भावे, तेह अमित सुख पायजी।५।
भावार्थ =उनके शिष्य "श्री राजहंस” उपाध्याय हुये। इनकी कृपा से मुनि देवचन्द्र भावनाओं के गुण गाता है। जो कोइ भव्यजीव इन भावनाओं को भावेगा, वह अमित सुख (मोक्ष) पायगा।-५
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