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ढाल ५ पांचवीं तत्त्व भावना की
( इणि परे चंचल आउखो जीव जागो रे......ए देशी ) चेतन ए तन कारिमो तुमे ध्यावो रे शुद्ध निरंजन देव भविक तुमे ध्यावो रे, शुद्ध स्वरूप अनूप भविक १ आंकणी ।
भावार्थ-रे चेतन ! इस तन को अनित्य समझो। शुद्ध निरंजन देव का ध्यान धरो । तथा आत्मा के अनुपम शुद्ध स्वरूप को ध्यावो ॥१॥ नरभव श्रावक कुल लयो,तुम०,लाधो समकित सार भविका जिन आगम रुचि सुसुणो,तुम आलस नींद निवार भविकर।
भावार्थ-रे जीव ! तुझे मनुष्य का जन्म मिला। श्रावक का कुल मिला । सारभूत समकित मिला । अब आलस्य और नींद को त्याग करके रुचि पूर्वक जैनागमों को सुना कर ॥२॥ समयांतर सहभाव नो, तु०, दर्शन ज्ञान अनंत । भ० । आतम भावे थिर सदा; तु०, अक्षय चरण महंत । भ० ३। __ . भावार्थ- जिसे समकित की प्राप्ति हो गयी, उसे किसी न किसी समय केवलज्ञान अवश्य होगा। केवलज्ञान और केवल दर्शन सहभावी हैं, मतान्तरा
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