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________________ पंच माना समाय भावार्षअसे किराये पर लिया हुआ मकान अपना नहीं होता है, वैसे ही यह करीर रूपी आवास थोड़े दिन के लिए ग्रहण किया हुआ है; अत: इसे पब कभी भी छोड़ना ही है । तेरा अपना घर तो आत्म-ज्ञान है । उसी में रहने से समाधि है । अर्थात् शरीर पर अपना ममत्व त्यागकर आत्म स्वरूपमें निवास किया कर ।-२२ मेतारज सुकोसलौ, वली गजसुकुमाल । सनतकुमार चक्री परे, तन ममता टाल ॥२३ रे जीव०॥ भावार्थ =मुनि मेतार्य, १ मुनि सुकोसल, २ मुनि गजसुकुमाल, ३तथा सनत्कुमार चक्रवर्ती की तरह तू भी अपने शरीर की ममताको टाल, हटा ।- २३। कष्ट पड यां समता रमे, निज आतम ध्याय । 'देवचन्द्र तिण मुनि तणां, नित वंदु पाय ॥२४रे जीव०॥ भावार्थ-जो मुनि कष्ट पड़ने पर भी अपनी आत्माको ध्याते हुये समतामेर मते हैं। उन मुनियों के चरणों में मैं नित्य वंदना करता हूं, यों श्री देवचन्द्र जी महाराज कहते हैं। नोट-१-२-३-४ की जीवनियां परिशिष्ट में पढिये । For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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