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पंच भावना सज्झाय काल असंख्याता ना भव लखे रे, उपदेशक पण तेह । परभव साथी आलंबन खरो रे, चरण विना शिव गेह ।११श्रुता ___भावार्थ...ज्ञानी पुरुष असख्यात-काल के पिछले जन्मों को देख सकता है । श्रुत के आधार पर उन्हें बतला भी देता है । अत: परभव में जाते समय खरा साथी श्रुतज्ञान है । सभी को श्रुत का ही सहारा है । श्रुत का बल हो, तो द्रव्य चारित्र के बिना भी मोक्ष पाया जा सकता है । यहां यह ध्यान रहे कि भावचारित्र के बिना तो किसी को भी मुक्ति नहीं हुआ करती। ॥ ११ ॥ पंचमकाले श्रु तबल पण घट्यो रे, तो पण ए आधार । 'देवचन्द्र' जिनमत नो तव ए रे,श्रुत सूधरज्यो प्यार१२ श्रुत
भावार्थ...यद्यपि पञ्चमकाल ( कलियुग ) में श्रुत की शक्ति बड़ी क्षीण हो गयी है। फिर भी मुमुक्षुओं को आधार तो श्रुत ज्ञान का ही है। जिनेश्वरदेवके मार्गका यही सार है कि, ज्ञानसे प्यार धरना अर्थात ज्ञान पाने की रुचि रखना। श्री देवचन्द्रजी महाराज यों कहते हुए पहली श्रुत-भावना को सम्पूर्ण करते हैं १२
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