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साधारणतया ७२
तथा हमें गद्दी में ले जाने को कह कर आध घण्टा के भीतर ही स्पेशलिस्ट डाक्टर को लेकर पहुंचने का कहा । हम उसे गद्दी में लाए । आते ही भगवान और गुरुदेव के चित्रों को नमस्कार कर सबको प्रणाम किया फिर मेरे गोडे पर मस्तक रखकर सोया । डाक्टर ने आते ही पंखा खोल, बत्ती जलाई तो वह चौंकने लगा। डाक्टर ने श्री कानमल जी सेठिया की गद्दी में जाकर मुझे बुलाया और कहा, " रोगी को हम किसी भी हालत में बचा नहीं सकते । घंटे से अधिक इस हाइड्रोफोबिया का डेवलप होने के बाद कोई रोगी बच नहीं सकता । विश्व के विज्ञान की इस रोग के आगे पराजय है । गवर्नमेंट इसकी 'औषधि निर्माण के लिये कोटि कोटि रुपये व्यय कर सकती है पर अभी तक तो यह विश्व में रिकार्ड है कि इस रोग का कोई इलाज नहीं । हम आपसे ६६ परसेन्ट १ पोइन्ट निराशा - जनक कह सकते हैं। हमने कहा होश- हवास बात-चीत आदि सब ठोक है फिर ऐसी क्या बात है ? उन्होंने कहा, "यह स्थिति तो अन्तिम स्वांस तक रहेगी। आप अविलम्ब अस्पताल में भरतो कर दीजिए ।" हम अपने प्रयत्न में न्यूनता नहीं रखेंगे पर इलाज़ वही होगा कि जब तक जिये सुख से जिये, शक्ति बनी रहे । ! टेलीफोन करके तुरन्त हो एम्बुलेंस गाड़ी मंगा ली गयी और शाम को ६ ॥ बजे नीलरतन सरकार अस्पताल में भर्ती करा दिया । पास में उपचारिका रख दी एवं हम लोग मन्त्रतंत्रादि के उपचारों की भी चेष्टा करने लगे । रात १२-१२॥ बजे तक घूमते फिरते एक होमियोपेथ डाक्टर ने हमें आशा बंधाई और दवा दी। हमने डाक्टरों से अनुमति मांगी, उन्होंने उस समय तो ना कहा पर दूसरे दिन हमारे आग्रह पर उन्होंने उपचार करने को सहर्ष स्वीकृति दे दी । हमने नियमानुसार होमियोपेथिक दवाई दी पर कोई विशेष लाभ न हुआ । 'सारे डाक्टर इन तरुण रोगी में दिलचस्पी लेते थे । लेडी
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डाक्टर और नर्सों
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