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________________ आखों में आंसू लाकर परमात्मा से मनोहर के अच्छे हो जाने को प्रार्थना करतो यो । मंगलवार की रात को ६ बजे उसने थोड़ा दूध लिया, दो एक कमला निम्बू की फांक भी खाई एवं थोड़ा पानी भी पिया। ७२ घंटे व्यतीत हो जाने से हमें आशा की किरण दिखाई दी। पर आयुष्य कर्म के अनुसार टूटी हुई डोर फिर संध न सकी और उस आत्मा ने आयु की अवधि पूर्ण होते ही उस विनश्कर देह का त्याग कर दिया। ___ मनोहर जब तक जीवित रहा-असाधारण शान्ति और समता के साथ उसने अनन्त वेदना सही। उसके शब्दों में कभी भी दैन्य भाव नहीं आया और मोह ममता को त्याग कर केवल आत्मानन्द में लीन रहा । शारीरिक अवशता से कभी कोई ऐसी चेष्टा हो जाती तो वह तुरन्त कहता “भाई जी मेरी अज्ञानता वश हो कोई अनर्गल बात निकल जाय तो पता नहीं किन्तु मेरे मन में पूर्ण शान्ति है । यह शरीर नाशवान है । आत्मा अजर अमर अविनाशी है तो इस शरीर के लिए क्यों चिन्ता की जाय । जब मैं बीकानेर में किताबों की पार्सल लेकर रांघडी चौक में आया तो एक कुत्ते ने मुझे काट खाया। डा. हर्ष ने कहा कि यदि पागल कुत्ता नहीं था तो हाइड्रोफोविया के कोर्स की आवश्यकता नहीं। दो एक पेनीसिलिन के इंजेक्सनों से घाव सूख गया और मैं निश्चिन्त हो गया, यदि उस समय उचित कोर्स पूरा कर लिया जाता तो यह दशा आज क्यों होती ! पर यह. सब विकल्पमात्र हैं। मैं इसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराता। मेरे बन्धे हुए कर्म मुझे ही भोगने पड़ेंगे" । मेरे द्वारा समभाव की अनुमोदना करने पर, मनोहर ने कहा "ज्ञानो वेदे धैर्य थी, अज्ञानी वेदे रोय" उसने कहा 'भाई जी, मेरी मां को बुलवा दीजिये। मेरे मन में दो ही इच्छाएँ हैं एक तो मां के चरणो में मस्तक टेक कर उसका मुंह देख सकू, दूसरी-गुरुदेव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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