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________________ प्रभंजना नी सज्झाय है । क्रिया । पहले भेद में एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ का चिंतन करना अर्थसंक्रान्ति एक व्यञ्जन ( अक्षर ) से दूसरे व्यञ्जन का विचार करना व्यञ्जन संक्रान्ति है । एक योग से दूसरे योग में गमन करना योग संक्रान्ति है । पृथक् अर्था अलग-अलग, वितर्क अर्थात श्रुत, विचार अर्थात् संक्रमण यह शाब्दिक अर्थ है । ध्याता जिस प्रकार संक्रमण करता है उसी प्रकार वापिस लौट आता है प्रथम शुक्ल ध्यान द्वाराबाल ब्रह्मचारिणी प्रभंजना का चित्त निर्मल एवं शान्त हो जाने से वे दूसरे शुक्ल ध्यान को ध्याने की अधिकारणी हो गई । एकत्व - वितर्कअविचार' अर्थात् यह ध्यान पृथक्त्व रहित विचार रहित और वितर्क सहित है । इस ध्यान से गुण और गुणी का भेद मिटा कर गुण गुणी में समा गया । परजय अर्थात सर्व विकल्पों पर विजय प्राप्त करके अपने चिर शत्रु दुर्द्धर मोह को खपा दिया ॥ ३ ॥ Jain Educationa International + For Personal and Private Use Only ₹ अनन्तानुबन्धी सुभट ने काढी, दर्शन मोह गमायो । तिरि-गति हेतु प्रकृति खय करी, थयो आतमरस रायो रे । अनु४ । द्वितीय तृतीय चोकड़ी खपावी, वेद युगल खय थायो । हास्यादिक सत्ता थी ध्वंसी, उदयवेद मिटायो रे । अनु ५ ॥ भावार्थ -- अब इस मोह कर्म को खपाने का क्रमानुसारी वर्णन करते हैं । सबसे पहले अनन्तानुबंधी क्रोध - मान-माया-लोभ को तथा दर्शन मोहनीय अर्थात सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय, और मिश्र मोहनीय को खपाया । फिर अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानी कषाय को खपाते समय इन्हें आधा खपा करके नरकगति की आनुपूर्वी २, तिर्यञ्चगति की आनुपूर्वी ४, एकेन्द्रिय जातिनाम, बेइन्द्रिय जाति नाम, ते इन्द्रिय जाति नाम तथा चौइन्द्रिय जाति नाम ८. भातप दश् www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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