________________
ढाल ३ तीसरी
'तूठो तूठो रे मुज साहेब जग नो तूठों' ए देशी आयो आयो रे अनुभव आतमचो आयो । शुद्ध निमित्त आलंबन भजतां आत्मालंबन पायो रे | अनुभव | १ |
भावार्थ- बढ़ती हुई संवेगधारा से उसी समय महासती प्रभंजना को अपने शुद्ध आत्मस्वरूप का साक्षात्कार - अनुभूति हुई । सद्उपदेश रूप शुद्ध निमित्त का आलम्बन कर घ्यान करने से उन्हें अपने शुद्ध आत्म-स्वरूप में रमणता रूप अवलम्बन मिल गया ॥ १ ॥
आतमक्षेत्री गुण परजाय विधि, तिहां उपयोग रमायो ।
पर परिणति पर री ते जाणी, तास विकल्प गमायो रे । अनु २।
भावार्थ — अन्तरात्मा में ( जीवके आठ रूचक प्रदेशों ) सत्ता में रहे हुए केवलज्ञान गुण और पर्याय अवस्थाओं में अपने उपयोग को रमाया, साथ ही विभाव रूप उपयोग को अपने आत्म स्वभाव से भिन्न जान कर तत्सम्बन्धी संकल्पविकल्प को हमेशा के लिये त्याग दिया ॥ २ ॥
पृथकत्व वितर्क शुकल आरोही, गुण गुणी एक समायो । परजय द्रव्य वितर्क एकता, दुर्द्धर मोह खपायो रे । अनुभव३ ।
भावार्थ — शुक्ल ध्यान के चार भेद हैं ।
-
२ - एकत्व - वितर्क - अविचार, ३ सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति, और ४ – समुच्छिन्न
Jain Educationa International
१ - पृथक्त्व - वितर्क - विचार
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org