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होती है। यदि तू नमन न करेगा तो तुझे दुःख ! ( विषहर ) की प्राप्ति होगी। यदि तू शरण न देगा तो तुम्हें कीति की प्राप्ति न होगी।" (१४६-१५२ ) इसका जो उत्तर हम्मीर ने दिया, वह उसके चरित के अनुरूप ही है।
वीरों की गाथा के गायन को मध्यकालीन कवि पवित्र मानते रहे हैं।
पद्मनाम ने कान्हड़दे प्रबन्ध को पवित्र ग्रन्थों और तीर्थों के समान पवित्र समझा है। भाँडउ व्यास को भी अपने प्रन्थ की पवित्रता में विश्वास है :
रामायण महाभारथ जिसउ, हम्मीरायण तोजउ तिसउ ; . पढ़इ गुणइ संभलइ पुराण, तियां पुरषां हुइ गंग सनान ॥ ३२४ ॥
सकल लोक राजा रंजनी, कलियुगि कथा नवी नीपनी ; ... मणतां दुख दालिद सहु टलइ, मांडउ कहइ मो अफलां फलइ ॥ ३२६॥
प्रतीत होता है कि रामायण नाम को ध्यान में रख कर ही भाँडउ व्यास ने अपने ग्रन्थ का नाम हम्मीरायण रखा है।
रणथंभोर का भौगोलिक वृत्त
रणथंभोर की चढ़ाई के वर्णन को उसकी स्थिति के ज्ञान के बिना अच्छी तरह समझना असम्भव है। इसीलिए शायद भाण्डउ व्यास ने रणधंमोर का कुछ वृत्त दिया है जो भौगोलिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। उस नगरी में अनेक विषम घाट वापो, और सरोवर थे (७),
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