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पर नगर में उत्सव के वर्णन हम्मीर महाकाव्य में हैं, और कान्हड़दे प्रबन्ध में भी। किन्तु वर्धापन के वर्णन में भाण्डउ ही कह सका है :- रणथंमवरि बधावउ करइ, ते मूरिख मनि हरख जि धरई"
नाल्हभाट का अलाउद्दीन के दरबार में जाना, अलाउद्दीन से उत्तर प्रत्युत्तर करना, और अन्त में अलाउद्दीन द्वारा स्वामिद्रोहियों को मरवाना भी सम्भवतः माण्डउ की ही सूझ है । वीर भाट जाति की युद्ध में उपस्थिति और उसके महत्त्वपूर्ण कार्य का यह एक पर्याप्त पुराना उदाहरण हैं। ____कान्हड़दे प्रबन्ध में अनेक राजपूत जातियों की सूची है। किन्तु हम्मीरायण की सूची में संदा, वंदा, कछवाहा मेरा, मुकिमाण, बोडाणा, माटी, गौड, तँवर, सेल, डामी, डाडी, पयाण, रूण, गुहिलत्र; हिल, सिंधल, मंडाण; चंदेल, खाइडा, जाडा, और निकुंद नाम अधिक है। संख्या भी जोड़ने पर पूरी छत्तीस बैठती है। घेरे के वर्णन में भी सामान्यतः कुछ नई बातें हैं जिनका ऊपर निर्देश हो चुका है। रणमल्ल जौर रायपाल किस चाल से एक लाख सैनिकों को किले से निकाल ले गए-यह भी कुछ नवीन सूचना है ।
हम्मीर के अन्तिम युद्ध के वर्णन में भी मांडउ ने अच्छी सफलता प्राप्त की है। ये पद्य पठनीय है :
जमहर करी छडउ हुयठ, हमीर दे चहुयाण ; सवालाख संभरि धणी; घोड़इ दियइ पलाण ॥ २७९ ॥ छत्रीसइ राजाकुली, ऊलगता निसि दीसः तिणी वेला एको नहीं, उवाढउ लेवहु ईस ॥ २८ ॥
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