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हम्मीरायण में अला
मैं उल्लू खाँ की सेना जा पहुँची; और वहीं से उन्होंने मोल्हण को अपना - दूत बनाकर हम्मीर के पास भेजा । हम्मीरायण में स्वयं अलाउद्दीन मोल्हा - को भेजता है । मुसलमानी तवारीख फुतू हुस्सलातीन के आधार पर हमें • हम्मीर महाकाव्य का ही कथन मान्य है । १ दोनों की माँग में कुछ अन्तर है । हम्मीर महाकाव्य में यह माँग लाख स्वर्णमुद्राओं, चार हाथियों, चार मुगलों, राजकन्या, और तीन सौ घोड़ों के लिए है। उद्दीन कुछ माँगता ही नहीं, अपनी माँग के उज्जयिनी, सांभर आदि भी देने के लिए तैयार है । उसमें हाथियों की "संख्या अनिश्चित और मुगलों की दो है, जो शायद ठीक है । साथ ही - इसमें धारु और वारु नाम की नर्तकियों के लिए भी माँग की गई है । दोनों काव्यों का उत्तर एक सा । ऐसा ही उत्तर 'सुर्जन चरित' में भी वर्णित है; और इसकी सत्यप्रत्ययता फुतू हुस्सलातीन द्वारा समर्थित है । "
स्वीकृत होने पर मांडू,
नुसरतखाँ की मृत्यु का प्रसङ्ग दोनों काव्यों में हैं । किन्तु नुसरतखाँ किस तरह मरा इसका ठीक वर्णन तो हम्मीरमहाकाव्य में है । तारीखे फिरोज शाही से भी हमें ज्ञात है कि जब नुसरतखाँ पाशीब और गड़ गज तैयार कर रहा था; दुर्ग पर की किसी मगरिबी का गोला उसे लगा और वह बुरी तरह घायल हो कर तीन चार दिन में मर गया । हम्मीरमहाकाव्य में और तारीखे फिरोजशाही में भी अलाउद्दीन इसी के बाद ससैन्य रणथंभोर पहुँचता है । उसके पीछे दिल्ली में विद्रोह हुआ और अन्यत्र भी; किन्तु सुल्तान रणथंभोर के सामने से न हटा । 3
१. फुतू हुस्सलातीन का अवतरण आगे देखो।
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३. तारीखे फिरोजशाही का अवतरण आगे देखें ।
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