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________________ २९. "इन दोनों ने प्रच्छन्न रूप से ऐसा कुछ किया कि सवा लाख ( संपादलक्ष ) का परिग्रह स्वामिद्रोह करके बादशाह से जा मिला।" (३०) जाजा ने कहा, "घर वह जावे जो माता पिता के अतिरिक्त तीसरे का जन्मा हो ।" (३१) महिमाशाहि ने कहा कि तो वह कोठार के धान्य और गढ की रक्षा करेगा | Jain Educationa International ( २१ ) २९. चउपर यह है : 'राय तणइ मनि नहीं विशेष, द्रोहे कीधउ काम अलेख सवालाख परिघउ (यह ) रावु, द्रोहे मिल्या जाइ पतिसाहि ॥ २३७॥ 'भलेख' का अर्थ 'अलेख्य है । इसी 'अलेख्य' कार्य को कवि ने २२२ वीं चउपई में भी इंगित किया है । द्रोह का उत्तरदायित्व शायद कवि ने प्रधानों पर हो रखा है। (३०) पद्यांश यह है : 'जाजउ कहइ ति जाउ, जे जाया तिह जण तणा ॥ २४८ ॥ I संभवतः 'ति जण' का अर्थ डा० गुप्त ने तीसरा जन किया है । वैसे "तिर जण " का अर्थ 'वह (अवक्तव्य) पुरूष' अर्थात् जार प्रतीत होता है। मल्ल के कवित्त में इसी प्रसंग में 'तसै जणे' है (पृष्ट ४९ दूहा ३) (३१) चउपई यह है : Roman महिमासाहि इसिउ कहइ, निसुणि राय हमीर | धान जोवाडि कोठार ना, गढ राखां तर मीर ॥ २५४ ॥ अर्थ यह है : तुम महिमा साहि ने कहा, 'हे राय हमीर, सुनो । कोठार के धान्य को दिखवाओ ।" ( ' धान्य होगा ) तो हम गढ़ रखेंगे ।' For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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