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२७. 'कोठारी
से
उन्होंने कहा, "धान्य फेंक
कर तुम भी सब के समान निश्चष्ट पड़ जाओ ।"
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२८. 'वे राजा को यह विश्वास दिलाते रहे कि उसकी सेना के आगे
शत्रु निरंतर क्षीण पड़ता जा रहा है, केवल एक
बार [ और ] उसे परिग्रह को [ रणक्षेत्र में ] देने की आवश्यकता थी ।'
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( २० )
२७. पद्यांश यह है :
कोठारी नइ बोल्यउ विरउ,
धान नखावि सहु तरं परउ ॥ २३४ ॥ इससे अग्रिम चउपर में हमें यह सूचना भी 'तिणि नीचि नाख्या सहु धान ।'
उस समय तक कोई निश्चेष्ट
मिलती है । किन्तु दुर्ग में था ही नहीं । इसलिये निश्चेष्ट पड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं है। धान नखावि ( नखाव ) सहु त परउ' का अर्थ यही है कि 'तू सब ( सहु ) धान्य दूर ( परे, परउ ) फिक्रवा दे ( नखाव ) ।'
२८. चउपर यह है ।
:---
रिणमल रउपाल मांगइ पसाउ; एक बार परघउ दाउ राउ, safe की करां अति भलउ, जे में तुरक पाडां पातलउ ॥२३६॥
वास्तविक अर्थ यह है :
"रिणमल और रायपाल ने यह प्रसाद ( favour) मांगा, “एक वार राय हमें परिग्रह ( सेना ) दें। हम कटक में भली क्रीडा करेंगे, जिससे हम तुर्कों को कमजोर कर सकें ।
अपभ्रंश और राजस्थानी के जानकार ' पसाउ' 'परघड', 'कीलउ' 'पातलउ' आदि शब्दों से अच्छी तरह परिचित हैं। 'पातलउ' पातला ( पतला ) है ।
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