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पाठान्तर
३११ मनि गमइ छइ हियइ । ३१२ देस भंडार गढि घर गाम, स्वामि, तूठइ, द्रोह
कियउ ते । ३१३ वेसासघातकी जे नर होइ, मारी जइ > नारी जाइ। ३१४ जेहनइ ए हुंता; ग्राम > आस, बीड़ा लेता, राउ
दिखाड़इ। ३१५ राउ, दास किराड़ - वाणि, नाखिउ > खवाइ । ३१६ रउपाल, थकी > तणी। ३१७ भाट कहइ प्रभु दे निर्वाप, रिणमल रिउपाल - य्यां,
नहिं को नवि कोई। ३१८ जयइर - जेइ, ग्रास > मान, त्याह मांहि कीधा ए काम,
दीयउ, खाल, कढावईतीणइ ठामि । ३१६ आवड़िया आप, कियउ, सूगापुरि । ३२० राजपूत, प्रवाह्यउ, राय, कीयउ । ३२१ धन पीता; मात्र=पिता पक्ष अजुआल उ आपणउ,
धन धन। ३२२ जिह - ज्यांरी; जग ऊपहरा हुआ तिणि ठामि । ३२३ दीधउ भाट नइ घणउ ज मान, सामि, वहर। ३२४ रामाइण, सांभलइ, होइ।। ३२५ त्रिण, हुअइ समइ, सातमि, दिनिकही दिनइ । २२६ रंजिनी, युगि, काया, सुणतां ।
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