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हम्मीरायण तक लड़ाई के चलते रहते हजारों योद्धा हताहत हुए। आधी बची सेना को देख और किले को अजेय देखकर, अदीनराज ने लौटाना चाहा। इसके भग्नमन को देख हम्मीर के दो विश्वासघाती मंत्री रायमल और रामपाल बादशाह से आकर मिले
और बोले-बादशाह ! कल परसों तक किला हाथ में आजाएगा, क्योंकि किले में अकाल पड़ गया है। 'आप कहीं न जाएं।' अदीनराज ने उन विश्वासघातकों को पुरस्कृत कर किले की नाकेबन्दी कर डाली। इस भीषण संकट को देख हम्मीर अपने सैनिकों को बोला-रे मेरे जाजमदेव आदि योद्धाओं! मेरी शक्ति सीमित है, पर शरणागत की रक्षा के लिए काफी सैन्य शक्ति वाले अदीनराज के साथ लडूंगा। भले ही यह नीति के विरुद्ध है। अतः तुम सब लोग किले से निकल अन्य स्थानों पर चले जाओ। वे बोले-राजन् ! निरपराध होकर भी आप तो करुणापूर्वक शरणागत की रक्षा के हेतु युद्ध स्वीकार करें और आपकी दी हुई आजीविका खाने वाले हमलोग आपका साथ छोड़ कायर कैसे बनें ? हम भी कल आपके शत्रु को मारकर आपकी मनोरथ सिद्धि में सहायक बनेंगे। हां, इस बेचारे यवन को छोड़ दीजिये, ताकि रक्षा के योग्य रक्षा हो सके, क्योंकि उसी की रक्षा के लिये यह सब कुछ किया जा रहा है। यवन महिमसाहि वोला-'देव, मुझ अकेले और विदेशी के लिए आप अपने परिवार और राज्य को नष्ट क्यों कर रहे हैं ? मुझे जाने दें, राजा बोला-'ऐसा न कहो। हां, यदि तुम किसी निरापद स्थान पर जाना चाहो तो हम अयश्य पहुंचा देंगे।' यवन बोला-नहीं
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