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हम्मीरायण ॥ श्री दयावीर कथा ॥
(हिन्दी) ___ कालिन्दी [यमुना] के किनारे योगिनीपुर नामक नगर है। वह अपने बाहुबल से सारे भूमण्डल को जीतने वाला, शत्रुओं के लिये प्रलय के धूमकेतु के समान, अनेक हाथी, घोड़े तथा पैदल सेना वाला, सभी प्रतिपक्षी राजाओं की रमणियों के नयनों में अश्रू समुद्र लहरा देनेवाला, दीनों का रक्षक अदीन नामक यवनराज हुआ। एक बार किसी कारणवश वह अपने एक सेनानी महिमसाह पर ऋद्ध हो गया । सेनानी ने बादशाह को क्रुद्ध तथा प्राणों का ग्राहक जान विचार किया, कि "क्रोधी राजा का विश्वास न करना चाहिये।" अतः जबतक मैं स्वतंत्र हूं ( गिरफतार न कर लिया जाऊ) तब तक कहीं जाकर अपनी प्राणरक्षा करनी चाहिये। यह विचार वह सपरिवार भाग गयो । भागते भागते उसने सोचा, कि परिवार के साथ मैं बहुत दूर तो नहीं निकल सकूगा और परिवारको छोड़कर भागा भी नहीं जासकता क्योंकिअपने ही जीवन के लिये कुल को छोड़ जो बहुत दूर चला जाता है, उसके जीवन का उपयोग ही क्या ?” सो यहीं दयावीर श्री हम्मीरदेव की शरण में जाना चाहिये। यों विचार वह यवन महिमसाहि हम्मीरदेव के पास जाकर बोला-देव, विना अपराध
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