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परिशिष्ट (२)
[ ] मिल रिणमल कागले सुतो पतिसाह सरसू वल मिले वीरम्म भेद आपवै घरसू छाहडदे छतिपति हुवो तोसू अमेलो पीथीराज परवाण कियो, पतिसाहां भेलो की रंढ कर कवि 'मल्ल कहै जुध्ध भरोसो जाहसू हमीर भीच थारा हमै सो मिलिया पतिसाह सू
[१०] मिलो पीथल थिर चित्तो परतापसी पण मिलो
... ... ... ... ... ... लोप कुलवटची लजा चंद सुर पण मिलो मिलो के ठाकुर दूजा; करतार मिलो बेध्या मिलो इंद मिल वलि को बियो अलावदीन हूँ न मिलू कदि कदि मर हैमर हियो
[११] खड़ि तिलंग खडि बंग खडै खखो खखरांणह खडै ढोरसामंद खड़े थट्टो मुलतांणह खड गोड़ गज्जणौ देस पूरव ते आवै चोहवाण चक्कवे मेछ दिस सीस न नांव सुरताण खड़े ढिल्ली सहित अलावदीन अंबर अड़े हमीर रांण विकसै हसै तिकर जाण तंडव पड़े
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