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________________ ( १२६ ) ' पास इस अग्नि को बुझाने के लिए कोई सामग्री एकत्रित न हुई थी ( खजाइनुलफूतुह ) ” । अ अलाउद्दीन को एक नई युक्ति सूझी। उसने समस्त सैनिकों को आदेश दिया कि वे चमड़े और कपड़े के थेले बनाकर उनमें मिट्टी भर दें और उन थेलों द्वारा खाई को पाट दें। हर एक ने अपना थेला भरा और खाई में फेंका जिसका नाम रिण था । इस तरह खाई को पाट कर अलाउद्दीन ने उस पर पाशेब और गरगच तैयार करवाए । किले पर आक्रमण के साधन अन्ततः तैयार हो गए। इसी बात को हम्मीरायण ने मनोरञ्जक रूप में कहा है: - “पहिलउ रिण पूरउ लाकड़े, देई आग बाल्यउ तिय मडे । कटक सहून हुयउ फुरमाण, बेलू नखाउ तिणि ठाणि ॥ १९८ ॥ सुण तणी बांध पोटली, मीर मलिक वेलू आणइ भरी । न कर कोई झूम गढ़वाल, वेलू आणइ सहि पोटली ॥ १९९ ॥ छठ मासि संपूरण भस्यउ, ते देखि लोक मनि डराउ । कोसीसइ जाइ पहुता हाथ, तुरका तणी समीछइ वाच्छ ॥ २०० ॥ राय हम्मीर चिंतातुर हूउ, रिण पूर चउ दुर्ग हिव गयउ ॥ २०१ ॥ पहले रिण को उन्होंने लकड़ियों से भरा, किन्तु भटों ने उन्हें आग से जला डाला । तब सब सेना को आज्ञा हुई कि वे उस स्थान पर बालू डालें। अपनी सूथनों की पोटलियां बनाकर मीर और मलिक उन्हें भरभर कर लाने लगे । गढ़वालों से सबने युद्ध करना छोड़ दिया । सब सिर्फ १. फुतू हुस्सलातीन का अवतरण देखें । २. तारीखेफरिश्ता का अवतरण देखें। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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