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नुसरतखान की मृत्यु से अलाउद्दीन को निश्चय हो गया कि उसका स्वयं रणथम्भोर पहुँचना अत्यन्त आवश्यक था। एसामी ने नुसरतखाँ की मृत्यु का बिना वर्णन किए ही लिखा है कि उलुगखाँ ने सुल्तान से सहायता की प्रार्थना की।' बरनीके कथनानुसार ज्योंही अलाउद्दीन को नुसरतखाँ की मृत्यु का समाचार मिला, वह दिल्ली से रणथम्भोर के लिए रवाना हो गया। यही बात हमें हम्मीर महाकाव्य से भी ज्ञात है। __अलाउद्दीन की यात्रा निरापद सिद्ध न हुई। तिलपत के निकट उसके भतीजे अकतखाँ ने उसे कत्ल कर राज्य प्राप्त' करने का प्रयत्न किया, किन्तु अलाउद्दीन के सौभाग्य और अकतखाँ की मूर्खता से यह प्रयत्न सफल न हुआ। जब सुल्तान घेरा डाले पड़ा था अवध और बदायूं में उसके मानजों ने विंद्रोह किये और दिल्ली में मौला हाजी ने। किन्तु अलाउद्दीन रणथम्भोर के सामने से न हटा। यह दो हठीलों का युद्ध था। अन्तर केवल इतना ही था कि एक सीधा वीरव्रती राजपूत था, और दूसरा भारत का सब से कुटिल शासक जिसने अपने चचा तक को राज्य के लिए मार डाला, और जो राज्यवृद्धि के लिए कुटिल से कुटिल उपायों का अवलम्बन करने के लिए उद्यत था। ___हम्मीर महाकाव्य में लिखा है कि जब अलाउद्दीन रणथम्भोर पहुँचा तो हम्मीर ने उसका अच्छा स्वागत किया ? दुर्ग के ऊपर प्रतिपद पर शूर्प बंधवा कर उसने यह घोतित किया कि सुल्तान के आने से
१-देखें फुतू हुस्सलातोन का अवतरण । २-तारीखे फिरोजशाही का अवतरण देखें ।
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