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________________ ( ११३ ) आगे बढ़कर हम्मीर द्वारा धाराधीश भोज द्वितीय की पराजय का वर्णन है। किन्तु सं० १३४५ के हम्मीर के शिलालेख में इस विजय का उल्लेख नहीं है। इसलिये या तो यह विजय वि० सं० १३४५ के बाद हुई होगी। या नयचन्द्र के वर्णन में कुछ अत्युक्ति है। धारा के बाद हम्मीर का प्रयाण उत्तर की ओर है । उसने उजयिनी पर आक्रमण किया । वहाँ से मुड़कर उसने चित्रकूट पर छापा मारा। नयचन्द्र का यह कथन सत्य माना जाय तो महारावल समरसिंह को भी हम्मीर के हाथ पराजित होना पड़ा था। चित्तोड़ से हम्मीर आबू पहुंचा। उस समय अर्बुदेश्वर सम्भवतः प्रतापसिंह परमार रहा हो । वर्धनपुर बदनौर है और चङ्गा इसी नाम का मेरों का दुर्ग। उसके बाद पुष्कर में स्नान कर सांभर पहुँचना कठिन न था। महाराष्ट्र सम्भवतः मरोठ है, जो सांभर से कुछ अधिक दूरी पर नहीं है और खंडिल्ल खंडेला है। नयचन्द्र ने इस सब विजयों को एक साथ रख दिया है । किन्तु अधिक सम्भव यह प्रतीत होता है कि संवत् १३४५ (सन् १२८८) से पूर्व दो दिग्विजय हो चुकी थी। इस संवत् के ऊपर उद्धृत शिलालेख के ग्यारहवे श्लोक में हमीर के दो कोटि होमों का और बारहवें श्लोक में काश्चन विनिर्मित तीन भूमि से समायुक्त पुष्पक संज्ञक नाम के प्रासाद का वर्णन है । इनमें सेएक एक कोटि होम एक एक दिग्जय के बाद हुआ होगा। शिलालेख से यह भी निश्चित है कि उस समय तक यह प्रयाण मुख्यतः मालवे के विरुद्ध ही हुए थे। मरोठ, खण्डिल्ल आदि पर प्रयाण सम्भवतः सन् १२८८ ई० के बाद की घटनाएँ हैं। किन्तु इन दिग्जयों के होने की सम्भावना अवश्य है क्योंकि सन् १२९१ में निर्मित अपने ग्रंथ 'मिफताहुलफुतूह' मैं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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