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________________ ( १०७ ) स्नान करके ताम्र, कांस्य आदि वस्तुओं की दश तुला दीं। गुरु के सिंहराशिस्थ होने पर उसने सुवर्णशृङ्ग वाली सौ गौ ब्राह्मणों को दीं । उनका पुत्र सूर्यमन्त्र के सार का ज्ञाता था । लोल त्रिपुरा का पूजक था । लक्ष्मीधर विविधदेशीय लिपियों और अनेक विद्याओं को जानता था और राजा के यहाँ उसका मान था । सोम धनी था और विद्वान् भी । श्रीहम्मीर के पौराणिक नृपामात्य वैजादित्य ने इस प्रशस्ति की रचना की । अग्रिम पंक्तियों में इन्हीं सब इतिहास के साधनों के आधार पर हम हम्मीर के जीवन की इतिहासानुमत जीवनी प्रस्तुत कर रहे हैं । 'सत्य ही आनन्द है”, – ऐसा पूर्ण विश्वास रखते हुए हम हम्मीर - विषयक साहित्य के प्रेमी इस इतिवृत्त से प्राप्ति करेंगे। आशा रखते हैं कि भी कुछ आनन्द की हम्मीर भारतीय संस्कृति और स्वतन्त्रता के लिए युद्ध करना सदा से चौहान जाति का कर्तव्य रहा है। पृथ्वीराज और हम्मीर के वंशजों में अब भी आदर्श विशेष की प्रतिष्ठा के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वाले पूर्वजों के प्रति सम्मान है; अब भी अनेक चौहान हृदयों में यह प्रबल उत्कण्ठा है कि अपने महान् पूर्वजों की तरह वे भी अपनी मातृभूमि की सेवा करें। कहा जाता है कि म्लेच्छों से देश की रक्षा करने के लिए आदि चाहमान का जन्म हुआ था । यह पुरानी कथा है। किन्तु ऐतिहासिक काल में उनकी म्लेच्छ विरोधी सेवाओं के अनेक प्रमाण है । आठवीं शताब्दी में जब अरब लोग सिन्ध को जीतकर चारों ओर अग्रसर होने लगे तो अनेक राजपूत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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