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अलाउद्दीन और हम्मीर के संघर्ष का. इससे अधिक विस्तृत विवरण खुसरो के ग्रन्थ 'खजाइनुलफूतूह' में है जिसकी रचना उसने सन् १३११-१२ में की। भाषा अत्यन्त आलङ्कारिक है । खुसरो ने लिखा है, "जब भगवान् के छाये का आसमानी चित्र रणथम्बोर पहाड़ी पर पहुँचा तब अत्यधिक ऊँचा किला, जिसकी अट्टालिकाएँ नक्षत्रों से बात करती थीं घेर लिया गया। हिन्दुओं ने किले की दसों अट्टारियों पर आग लगा दी, किन्तु अभी तक मुसलमानों के पास इस अग्नि को बुझाने के लिए कोई सामग्री एकत्रित न हुई थी। थैलों में मिट्टी भर भर कर पाशेब' तैयार किया गया। कुछ अभागे नव मुसलमान जो कि इससे पूर्व मुगल थे हिन्दुओं से मिल गये थे। रजब से जीकाद ( मार्च से जुलाई ) तक विजयी सेना किले को घेरे रही। किले से बाणों की वर्षा के कारण पक्षी मी न उड़ सकते थे। इस कारण शाहीबाज़ भी वहाँ तक न पहुँच सकते थे। किले में अकाल पड़ गया। एक दाना चावल दो दाना सोना देकर भी प्राप्त नहीं हो सकता था। मव रोज के पश्चात् सूर्य रणथम्बोर की पहाड़ियों पर तेजी से चमकने लगा। राय को संसार में रक्षा का कोई भी स्थान न दिखाई पड़ता था। उसने किले में आग जलवा कर अपनी स्त्रियों को आग में जलवा दिया। तत्पश्चात् अपने दो एक साथियों के साथ पाशेब तक पहुंचा किन्तु उसे भगा दिया गया। इस प्रकार मंगलवार ३ जीकाद ७०० हिजरी ( १० जुलाई, १३०१ ई०) को किले पर विजय प्राप्त हो गई। झायन जो इससे पूर्व बहुत आबाद था और काफिरों का निवास स्थान था, मुसलमानों
१ "मिट्टी का मचान जो किले की दीवारों की ऊँचाई के बराबर बनाया जाता था। इस पर आगे और पत्थर फेंकनेवाली मशीने रखी जाती थीं।
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