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________________ प्रति का लेखन-काल संवत् १७०६ है। इसलिए कवित्त की रचना इस संवत् से परतर नहीं हो सकती। इसके प्रथम कवित्त में मंगोल की शरणागति और दूसरे में शरणप्रदान का वर्णन है। इसके बाद अलाउद्दीन के दूत मोलण और हम्मीर का वार्तालाप है। इसमें मोलण अलाउद्दीन की सामर्थ्य का बखान करता है। हम्मीर उससे गजनी, उलूगखों, नसरतखां, मरहठी नारी, ठट्ठा, तिलंग आदि का मांग करता है। (३-७) उसके बाद अलाउद्दीन के धेरे ( ९) उड्डानसिंह के हाथ धारू की मृत्यु (११) अलाउद्दीन के छत्र कटने ( १२१४), इसके बाद और युद्ध के आरम्भ होने का वर्णन है। साथ ही गद्यभाग में यह सूचना भी है, “जाजा बड़गूजर प्राहुणा होकर आया था । राजा हमीर ने उसे अपनी बेटी देवलदे विवाही थी। वह मोड़ बांधे ही काम आया। राणी देवलदे तालाब में डूबकर मर गई। किन्तु कवित्त में फिर वही कथानक चालू रहता है। हम्मीर जाजा को परदेसी पाहुणा कहते हुए जाने के लिए कहता है, किन्तु जाजा इन्कार करता है ( दूहा २)। पन्द्रहवें कवित्त में हम्मीर कहता है कि चाहे राणा रायपाल, चाहे बाहड, भोजदेव, रावतमोज, रतौ (रतिपाल ), वीरमदे, रावत जाजा, चन्दसूर और सभी देवी देवता भी शत्रु से मिल जाएँ तो भी वह अपने वचन का त्याग न करेगा (१५)। उसके बाद उसने अपूर्व युद्ध किया। सम्वत् १३५३, माघ सुदी एकादशी मंगल के दिन अलाउद्दीन ने रणथम्भोर लिया और मध्याह्न के समय हम्मीर ने अपना सिर सतप्रोल दरवाजे पर महादेव को चढ़ाया। - इन कवित्तों का स्वतन्त्र मूल्य विशेष नहीं है 'भाटखेम की कृति भी For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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