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________________ ठक्कुरफेरूविरचितासमपिंड सगुण निम्मल गुरुतुल्ला हीणपिंड लहुमुल्ला । फार लहुतुल्ल वज्जा बहुमुल्ला सम समा मुल्लो ॥ ३३ ॥ वजं लहु फलह सिरं वित्थरचरणं तिलोवरिं काउं । जो जड़इ अह जड़ावइ तस्स धुवं हवइ बहु दोसं ॥ ३४॥ जस्स फलहाण मज्झे वुड्डो वुड्डो हुंति भिन्न वन्नाई। कागपय रत्तबिंदू तं वजं होइ पुत्तहरं ॥ ३५॥ वज्जेण सव्वि रयणा वेहं पावंति हीरए हीरा। कुरुविंदो पुण वेहइ नीलस्स न अन्नरयणस्स ॥ ३६ ॥ अयसार कच्च फलिहा गोमेयग पुंसराय वेडुजा । एयाउ कूडवज्जा कुणंति जे होति कलकुसला ॥ ३७॥ कूडाण इय परिक्खा गुरु विन्नाया य सुहमधारा य । साणायं सुह घसिया दुह घसिया रयण जाइभवा ॥ ३८॥ ॥ इति वज्रपरीक्षा॥ अथ मुत्ताहलं - गयकुंभ १ संखमझे २ मच्छमुहे ३ वंस ४ कोलदाढे य ५। सप्पसिरे ६ तह मेहे ७ सिप्पउड़े ८ मुत्तिया हुंति ॥ ३९ ॥ मंदव(प)ह पीय रत्ता इय उत्तिम जंबुछाय मज्झत्था । वट्टामलयपमाणा गयंदजा हुँति रजकरा ॥ ४० ॥ दाहिणवत्ते संखे महासमुद्दे य कंबुजा हुंति । लहु सेया अरुणपहा नरदुलहा मंगलावासा ॥ ४१॥ मच्छे य साम वट्टा लहुतुला विमलदिट्ठिसंजणया । अरि - चोर - भूय - साइणि - भयनासा हुंति रिद्धिकरा ॥४२॥ गुंजसमा मंदपहा हवंति कच्छ वन सव्व भूमीसु । रजकरा दुक्खहरा सुपवित्ता वंसउद्धरणा ॥ ४३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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