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रत्नपरीक्षा का परिचय संपादित, पृ० १५४-५५) में मरु कान्तार किसी प्रदेश का नाम है जो शायद बेरेनिके से सिकंदरिया तक के मार्ग का घोतक था। यह भी संभव है कि ठक्कुर फेर का मतलब यहां कांतार से अरब के दक्खिन पूर्वी समुद्र तट से हो जहां के मोतियों के बारे में हम ऊपर कह आए हैं। अगर हमारा अनुमान ठीक है तो यहां कांतार से अगस्तिमत के आवाटी और मानसोल्लास के आवाट से मतलब है । केसिय से यहां निश्चय इब्नबतूता (गिब्स, इब्नबतूता, पृ० १२१, पृ० ३५३) के बंदर कैस से मतलब है जिसे उसने मूल से सीराफ के साथ में मिला दिया है । ( वास्तव में यह बंदर सीराफ से ७० मील दक्खिन में है)। सीराफ (आनुधिक तहीरी के पास ) पतन के बाद, १३ वीं सदी में उनका सारा व्यापार कैस चला आया। करीब १३०० के कैस का व्यापार हुरमुज उठ आया। कैस के गोताखोरों द्वारा मोती निकालने का आंखों देखा वर्णन इब्नबतूता ने किया है। जैसे, बाद में चल कर और आज तक बसरा के मोती प्रसिद्ध हैं उसी तरह शायद चौदहवीं सदी में कैस के मोती प्रसिद्ध थे।
इब्नबतूता के शब्दों में- 'हम खुंजुवाल से कैस शहर को गए। जिसे सीराफ भी कहते हैं। सीराफ के लोग भले घर के और ईरानी नस्ल के हैं। उसमें एक अरब कबीला मोतियों के लिए गोताखोरी का काम करता था । मोती के सीप सीराफ और बहरेन के बीच नदी की तरह शांत समुद्र में होते हैं । अप्रेल और मई के महीनों में यहां फार्स, बहरेन और कतीफ के व्यापारियों और गोताखोरों से लदी नावें आती है।
बुद्धभट्ट ने केवल सफेद मोतियों का वर्णन किया है। अगस्तिमत के अनुसार मोती महुअई (मधुर) पीले और सफेद होते हैं । मानसोल्लास में नीले मोती का भी उल्लेख है तथा रत्नसंग्रह में लाल मोती का । ठक्कुर फेरू ने भी प्रायः मोती के इन्हीं रंगो का वर्णन किया है।
रत्नशास्त्रों के अनुसार गोल, सफेद, निर्मल, खच्छ, स्निग्ध, और भारी मोती अच्छे होते हैं । अच्छे मोती के बारे में ठक्कुर फेरू (५१) का भी यही मत है।
रत्नशास्त्रों के अनुसार मोती के आकार दोष-अर्धरूप, तिकोनापन, कृशपार्श्व और त्रिवृत्त ( तीनगांठ ); बनावट के दोष-शुक्तिपार्श्व ( सीप से लगाव ) मत्स्याक्ष (मछली के आंख का दाग), विस्फोटपूर्ण (चिटक), बलुआहट (पंकपूर्ण शर्कर), रूखापन तथा रंग के दोष-पीलापन, गदलापन, कांस्यवर्ण, ताम्राभ और जठर माने गए हैं। मोती के प्रायः यही दोष ठकुर फेरू ने भी गिनाए हैं। इन दोषों से मोती का मूल्य काफी घट जाता था। . हम हीरे के प्रकरण में देख आए हैं कि ठक्कर फेरू ने मोतियों के तौल और दाम का क्या हिसाब रखा था । प्राचीन रत्नशास्त्रों में इस सम्बन्ध में दो मत मिलते हैं-एक तो बुद्धभट्ट और वराहमिहिर का और दूसरा अगस्ति का । पहले सिद्धान्त में गुंजा
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