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ठकुर-फेरू-विरचित ताम्रपर्णी-जैसा हम ऊपर कह आए हैं यहां ताम्रपर्णी से मनार की खाडी से मतलब है । ताम्रपर्णी नदी के मुहाने पर पहले कोरके बंदरगाह पर, वाद में उसके भरजाने से उसके दक्खिन पांच मील पर, कायल बंदरगाह हो गया।
पांड्यवाट- इससे शायद मथुरे का मतलब है जहां मोती का खूब व्यापार चलता था । शिलप्पदिकारम् (पृ०२०७ ) के अनुसार वहां के जौहरी बाजार में चन्द्रागुरु, अंगारक और अणिमुत्तु किस्म के मोती बिकते थे।
कौवेरवाट - इसका ठीक पता तो नहीं चलता पर संभव है कि यहां चीलों की सुप्रसिद्ध राजधानी कावेरीपट्टीनम् अथवा पुहार से मतलब हो । शिलप्पदिकारम् (पृ० ११०.१११) के अनुसार यहां मोतीसाज रहते थे और बे ऐब मोती बिकते थे।
पारशववास- इससे फारस की खाड़ी से मतलब है। यहां मोती बहुत प्राचीन काल से मिलते हैं। इसका उल्लेख, मेगास्थनीज, चेरक्स के इसिडोर, नियर्कस, तथा टाल्मी ने किया है । टाल्मी के अनुसार मोती के सीप टाइलोस द्वीपमें (आधुनिक बहरैन ) मिलते थे । पेरिप्लस (३५) के अनुसार कलैई ( मश्कत के उत्तर पश्चिम दैमानियत द्वीप समूह में कल्हातो) में मोती के सीप मिलते थे। नवीं सदी में मासूदी ने उसका वर्णन किया है। पारी रेनो, 'मेमायर सुर लें द' १८५९ । इब्नबतूता ( गिब्स, इब्नबतूता ) ने इसका उल्लेख किया है । बार्थेमा ने (दि ट्रावेल्स आफ लोदीविको बार्थिमा, पृ० ९५, लंडन, १८६३) हुमुज की यात्रा में फारस की खाड़ी के मोतियों का वर्णन किया है। लिन्शोटन और तावनिये ने भी हुरमुज, बसरा और वहरैन के मोती के व्यापार का आंखों देखा वर्णन दिया है।
अगस्तिमत (१०९-१११) और मानसोल्लास (१, ४३४) के अनुसार सिंहल, आरवाटी, बर्बर और पारसीक से मोती आते थे । सिंहल और फारस का तो हम वर्णन कर चुके हैं। आरवाटी से यहां अरब के दक्खिन-पूर्वी तट और बर्बर से लाल सागर से मिलनेवाले मोती के सीपों से तात्पर्य मालूम पडता है । अरब में अदन से मश्कत तक के बंदरों में मोती के गोताखोर मिलते हैं जो अपना व्यापार सोकोतरा के द्वीपों, पूर्वी अफ्रीका और जंजीबार तक चलाते हैं। लाल सागर में अकाबा की खाडी से बाबेल मंदेव तक मोती के सीप मिलते हैं ( कुंज, वही, पृ० १४२)।
ठक्कुर पेरू के अनुसार (४९) मोती रामावलोइ, बब्बर, सिंहल कांतार, पारस, कैसिय और समुद्रतट से आते थे। उपर्युक्त तालिका कुछ अंश में रत्न शास्त्रों की तालिकाओं से भिन्न है। रामावलोइ से जैसा हम पहले कह आए हैं, शायद मेरगुई के द्वीप समूह से अथवा पेंगू से मतलब हो । बब्बर से लाल सागर के अफ्रीकी तट से मतलब है । यहां बर्बर लोगों से तात्पर्य नील नदी और लाल सागर के बीच रहनेवाले दनाकिल तथा सोमाल और गल्लों से है। कान्तार से यहां रेगिस्तान से अभिप्राय है । महानिदेस (ला पूसां द्वारा
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