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ठकुर-फेरू - विरचित तसु पय पउमज्जोयणु भाणु, जस निम्मलु गुणगणह निहाणु । जुगपवरागम संसयहरणु, जिणपवोह सुरिसुहगुरु सरणु ॥ २२ ॥ तसु पट्ठद्धरु गुरु मुणिरयणु, मयणविणासणु सिवसुहकरणु । भवियलोयजण मणआणंदु, संपइ जुगपहाणु जिणचंदु ॥ २३ इय इत्तिय सुहगुरु आमनइ, जिणचंदसुरि जुगवर जो मनइ । सुजि रमइ सासय सिवनारि, वलवि न पडइ इत्थ संसारि ॥ २४ जक्खिणि जक्ख विउण चउवीस, विजादेवि चहूणी वीस । इय चउ(स)ठि मिलि देहि असीस, जिणचंदसुरि जिउ कोडि वरीस ॥२५ संघसहिउ फेरू इम भणइ, इत्तिय जुगपहाण जो थुणइ । पढइ गुणइ नियमणि सुमरेइ, सो सिवपुरि वर रज्जुकरेइ ॥ २६ तेरह सइतालइ महमासि, रायसिहर वाणारिय पासि । चंद तणुभवि इय चउपईय, कन्नाणइ गुरुभत्तिहि कहिय ॥२७ सुरगिरि पंच दीव सव्वेवि, चंद सूर गह रिक्ख जि केवि । रयणायर धर अविचल जाम, संघु चउन्विहु नंदउ ताम ॥ २८
॥ इति जुगप्रधान चदुपदिका समाप्ता ॥॥
जिणपबोह गुरराय चलणपंकय वर अलिवलु । नवविह जिय दयकरणु मयण गय सिंह महाबलु। चंदुज्जलु गुणविमलु कित्ति दस दिसिहि पसिद्धउ । दवणु पणंदिय चउ कसाय गुणगणिहि समिद्धउ । सुरिंदु पणय पण जण सहिउ, वंछिउ सुहियण निरु नरहु । रिउ अंतरंग मय अवहरणु पय पढमक्खरि गुरु सरहु॥१॥
॥सं० १४०३ फा० शु०८ लि०॥
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