SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युगप्रधान चतु-पदिका नागज्जोयसूरि गोविंद, भूइदिन्न लोहिच्च मुणिंद ।। दुसमसूरि उम्मासय सामि, तह जिणभद्दसूरि पणमामि ॥ ११ सिरि हरिभहसूरि मुणिनाहु, देवभहसूरि वर जुगवाहु । नेमिचंद चंदुज्जलकित्ति, उज्जोयणसुरि कंचणदित्ति ॥ १२ पयडिय सूरिमंतमाहप्पु, रूविज्झाणि निजियकंदप्पु। कुंदुज्जल जस भूसिय भवणु, सलहहु वडमाणसुरि रयणु ॥ १३ अणहिलपुरि दुल्लह अत्थाणि, जिणसरसूरि सिद्धंतु वखाणि। चउरासी आइरिय जिणेवि, लउ जसु वसहिमग्गु पयडेवि ॥ १४ जिणि विरईय कहा संवेग-रंगसाल तह सत्थ अणेग। नियदेसण रंजिय नरराय, तसु जिणचंदसुरि सेवहु पाय ॥ १५ वर नव अंग वित्ति उद्धरणु, थंभणि पास पयड फुडकरणु । अभयदेवसुरि मुणिवरराउ, दिसि दिसि पसरिय जसु जसवाउ ॥ १६ नंदि न्हवणु वलि रहु सुपइट, तालारासु जुवइ मुणि सिट्ठ। निसि जिणहरि जिणि वारिय अविहि, थुणुहु सु जिणवल्लहसुरि सुविहि ॥ १७ जोइणिचकु उजेणिय जेण, वोहिउ जिणि नियझाणवलेण । सासणदेवि कहिउ जुगपवरु, सो जिणदत्तु जयउ गुरपवरु ॥ १८ सहजरूवि निजिय अमरिंद, जिणि पडिबोहिय सावयविंद । पंच महव्वय दुद्धर धरणु, नंदउ जिणचंद सुरिमुणिरयणु ॥ १९ अजयमेरि नरवइपच्चक्खि, करि विवाउ वुहियणजणसक्खि। जिणि पउमप्पहु लउ जयपत्तु, जिणवइसूरि जयउ सुचरित्तु ॥ २० नयरि नयरिं जिणमंदिर ठविय, तोरण दंड कलस धज सहिय । तेवीसा सउ दिक्खिय साहु, जिणसरसूरि जयउ गणनाहु ॥ २१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy