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________________ ७६ ठकुर फेरू-विरचित ॥ दिगुसाधनाचक्रं ॥ समभूमी तिठ्ठीए वटुंति छ अट्ठ कोण कक्कडए। कूण दु दिसि सतरंगुल मज्झि तिरिय हत्थु चउरंसे ॥ ७ चउरंसिक्किक्कि दिसे बारस भागाउ पंचे भा मझे । कूणेहिं सड्ड तिय तिय एवं हुइ सुद्ध अटुंसं ॥ ८ ॥ इति भूमिसाधना ॥ चउरंस अदिसिमोहा अवम्मियाऽफुट्ट तिदिणवीयरुहो । अक्कल्लर भूमिसुहा पुव्वेसाणुत्तरंबुवहाँ ॥ ९ वम्मइणी वाहिकरा रोरूसर फुट्टभूमि मच्चुयरी । ससल्ला बहुदुक्खा तं वुच्छं सल्लनाणमिमं ॥ १० व क च त्त ए है स प य इय नव वन्नी कमेण लिहिऊणं । नव कुट्ठा भूमिकया पुवाइ मुणह पन्हेणे ॥ ११ व प्पन्हे नरसल्लं सडकरे मिचुकारगं पुव्वे । क प्पन्हे खरसल्लं अग्गि दुहत्थेहि निवदण्डं ॥ १२ दाहिण च प्पण्हेणं नरसल्लं कडितलंमि मिच्चुकरं । त पन्हिसाण नेरइ डिंभाण य मिच्चु सडकरे ॥ १३ ए पन्हे अवरदिसे सिसुसल्लं सङ्घहत्थि परदेसं। वायवि ह पन्हि चउकरि अंगारा मित्तनासयरा ॥ १४ १ अट्ठ। २त्तरंगुल। ३ भाग पण। ४ इय जायइ। ५ दिण तिग बीयप्पसवा चउरंसाऽवाम्मिणी अफुट्टा य । ६ भू सुहया । ७°बुबुहा । ८ वम्मइणी वाहिकरी ऊसर भूमीइ हवइ रोरकरी। अइफुट्टा मिचुकरी दुक्खकरी तह य ससल्ला ॥ ९ हसपजा। १० वण्णा। ११ लिहियव्वा । १२ पुवाइ दिसासु तहा भूमि काऊण नवभाए ॥ ११॥ अहिमंतिऊण खडियं विहिपुव्वं कन्नाया करे दाओ। आणाविजइ पण्हं पण्हाइम अक्खरे सल्लं ॥ १२॥ १३ अग्गीए दुकरि । १४ जामे। १५ तप्पण्हे निरईए सहकरे साणु सल्ल सिसुहाणी ॥ १४॥ १६ पच्छिम दिसि ए पण्हे सिसुसलं कर दुगम्मि परएसं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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