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ठक्कुर-फेरू-विरचित
वास्तु सार।
[प्रथमं गृहलक्षणप्रकरणम् ।]
_ नमो जिनाय। सयलसुरासुरविदं दंसण-वन्नाणुगाइ नमिऊणं । पयरण ति वत्थुसारं जहुत्त संखेवि भणिमो हैं ॥ १ . गेहे पनरहिय सयं, बिंबपरिक्खस्स गाह तीसाइं । पासाइ सहि भणियं, पणहिय सय दुन्नि सव्वेवं ॥ २॥ दारं ॥ वत्तीसंगुल भूमी खणेवि पूरिज पुणवि सा गत्ता । तेणेव मैट्टिएणं हीणाहिय सम फलं नेयं ॥ ३ . अहव तं भरिय नीरे चरणसयं गच्छमाण जा सुसइ । ति-दु-इग अंगुल कमि धरै अहं मज्झिम उत्तमा जाण ॥ ४ सिय विप्प, अरुण खत्तिय, पीयल वइसाण, कसिण सुदाण । मट्टियवन्नपमाणे सुहया विवरीय असुहयरी ॥ ५
॥ इति भूमिपरीक्षा ॥ समभूमि दुकर वित्थरि दु रहचक्कस्स मज्झि रवि १२ संकं । पढमंत छाय गम्भे जमुत्तरा अद्धि उदयत्थं ॥ ६ पाठान्तरे-१ वण्णाणुगं पणमिऊणं । २ गेहाइ वत्थुसारं संखेवेणं भणिस्सामि। ३.इगवन्नसयं च गिहे बिंबपरिक्खस्स गाह तेवन्ना ।
तह सत्तरि पासाए दुगसय चउहुत्तरा सव्वे ॥२। ४ चउवीसंगुल। ५ मट्टियाए । ६ फला नेया। ७ अह सा भरियजलेण य। ८ भूमी। ९ अहम । १० सिय विप्पि अरुण खत्तिणि पीय वइसी अ कसिण सुद्दी अ ।
मट्टियवण्णपमाणा भूमी नियनियवण्ण सुक्खयरी ॥ ११ दुरेह।
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