SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितसार-प्रथमाध्याय २. अह(थ) व्यवकलितमाह जह संकलियपएणं इक्किकं एगयाइ वड्डेइ । तह विमकलिए छिज्जइ इक्किकं मूलरासीओ ॥ २१ सेगं विमकलियपयं संकलियपयं च कीरए सहियं । दुन्ह पयंतरि गुणियं दलीकयं विमकलियसेसं ॥ २२ संकलिय सहस्साओ दसाइ दस-दसऽहियस्स संकलियं । साहेवि भणसु पंडिय जं हुइ विमकलियसेसंकं ॥ २३ विमकलियसेस सोहि वि संकलियधणाउ सेस्स बिउणजुयं । तस्स पयं सेससमं तं हुइ विमकलियमूलप्यं ॥ २४ संकलियपयं बिउणं सेगं विममलियपयविहीणदलं । विमकलियजुयं जं हुइ तं उवराओ य विमकलियं ॥ २५ सयसंकलियधणाओ उवराओ तीइ जाम विमकलियं । ता किं जायइ तं भणि, जइ विमकलियं वियाणाहि ॥ २६ ३. अथ गुणाकारमाहठवि गुन्नरासि हिढे कवाडसंधि व उवरि गुणरासी । अनुलोम-विलोमगई गुणिज सुकमेण गुणरासी ॥ २७ वीसा सउ बत्तीसिहि नव सइ चउस? सत्तवीसेहिं । अडहिय सउ सद्विगुणं किं किं पत्तेय होंति फलं ॥ २८ अह गुणरासी खंडिवि इगेग अंकेण गुणवि करि पिंडं । परकमि चडंति पंती छेय करवि सुकमि गुणिय पुणो ॥ २९ दुतीक गुणाकार सत्यालीक परिज्ञान गुणरासि गुन्नरासी पिहु पिहु पिंडं नवस्स सेसगुणं । तह गुणियरासिपिंडं नवसेससमं हवइ सुद्धं ॥ ३० खेवसमखंजोए रासि अविगयक्खं जोडणे हीणे । सुन्न गुणाणइ सुन्नं सुन्नगणे सुन्न सुन्नेण ॥ ३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy